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कविता

कदंब की तरह

शांति सुमन


बहुत दिनों से थी खाली पड़ी छत
उड़ता आया दिन कबूतर की तरह।

हवा में लहराती थी पत्तियाँ
देखा बाँस में फूल आ गए
फूही के मोती से सँवरे बाग-वन
चिड़ियों को बहुत-बहुत भा गए
पेड़ हरियर डालवाला लिखा खत
हिलता हुआ आया सपनों की तरह।

पहले से अब कहीं भी नहीं दीखते
गीतों से खेत में लिखे गाँव
सरसों के रंग रँगे पीले चूनर
मछलियों के लाल हुए पाँव
शेष है दूब की गमकने की लत
छन भीगा आया कदंब की तरह।

कुहेसों में भी दीख जाते सामने
उड़ान के लिए जैसे रास्ते
रुकी होगी चिलचिलाती धूप में
गंध कोई उसके ही वास्ते
पुलों से बनती पानी की संगत
नेह लौटा पुरानी शपथ की तरह।
 


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